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रायबरेली का सपूत शिववरण शुक्ल आज विश्व प्रसिद्ध मूर्धन्य विद्वान एवं अनुपम राष्ट्रभक्त

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भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के दक्षिण दिशा में प्रवहमाण पतित पावनी माँ गंगा के तट पर स्थित सिद्ध ज्वालेश्वर शिव मंदिर के समक्ष पं० राम प्रसाद शुक्ल सरवरियन का पुरवा, शिवनगर-रायपुर गौरी में सुप्रसिद्ध शैव पं० भगवत प्रसाद शुक्ल एवं श्रीमती शान्ती देवी के परिवार में 22 फरवरी, 1952 को शिववरण शुक्ल का जन्म हुआ।


प्राइमरी शिक्षा से आगे बढ़ते हुए 1987 ई0 में डॉ० शुक्ल ने विश्व में सर्वाधिक कम आयु में संस्कृत में शिक्षा की सर्वोच्च डिग्री ‘डी०लिट्०’ प्राप्त कर वैश्विक यशस्विता के प्रथम सोपान को स्पर्श किया।

डॉ० शुक्ल का जन्म रायबरेली में हुआ इसलिए रायबरेली और भारत का नाम विश्व पटल पर रखने की अभिलाषा रही है। 1990 में वियना में वर्ल्ड संस्कृत कांफ्रेन्स में डॉ० शुक्ल ने अपना शोध पत्र संस्कृत साहित्य के रायबरेली जनपद के योगदान में रायबरेली के संत महात्माओं, संस्कृत विद्वानों का यशोगान वियना (आस्ट्रिया) में करके पूर्वजों से जो आशीर्वाद अर्जित किया, उसी की परिणति हैं आज के शिववरण शुक्ल ।

विश्व सम्मेलनों में वियना, (ऑस्ट्रिया), रियो (ब्राजील), बीजिंग (चीन), डरबन (साउथ अफ्रीका), मेलबोर्न (ऑस्ट्रेलिया) देशों में डॉ० शुक्ल की ज्ञान-गरिमा और आदर्श व्यक्तित्व की प्रशंसा प्रारम्भ हुई। उक्त सभी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में डॉ० शुक्ल के सुझाव को अक्षरशः स्वीकार करते हुए
चेयरपर्सन बनाया गया। वारसा विश्वविद्यालय, पोलैण्ड में डॉ० शुक्ल को Ancient Sanskrit Literature पर व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया गया। मेलबोर्न विश्वविद्यालय में आयोजित विश्व संस्कृत सम्मेलन में डॉ० शुक्ल के सुझाव को अक्षरशः स्वीकार कर “संस्कृत एवं पर्यावरण” नामक स्पेशल पैनल बनाकर डॉ० शुक्ल को पैनल का चेयरमैन बनाया।

उत्तर प्रदेश में संस्कृत का अध्ययन, अध्यापन और शोध के कार्य हिन्दी में ही होते रहे। डॉ० शुक्ल ने महामहिम राज्यपाल, उत्तर प्रदेश के माध्यम से संस्कृत की संस्कृत भाषा में ही अध्ययन-अध्यापन और शोध के कार्य को सम्पादित करने के लिए आदेश पारित कराया।

विश्व संस्कृत सम्मेलन की भाषा English ही होती रही। जिसका विरोध डॉ० शुक्ल ने विश्व स्तर पर किया और इस समय International Association of Sanskrit Studies, Paris ने डॉ० शुक्ल के सुझाव को स्वीकार करते हुए सम्मेलन की भाषा को Sanskrit or English कर दिया।
भारत सरकार के शिक्षा विभाग ने जब संस्कृत को त्रिभाषा सूत्र से हटा दिया था जिसका विरोध डॉ० शुक्ल ने किया और तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी से भेंट कर संस्कृत के महत्व को बताते हुए पुनः संस्कृत को त्रिभाषा में सम्मिलित कराया।

केन्द्रीय विश्वविद्यालय, जामिया मीलिया नई दिल्ली में डॉ० शुक्ल ने अति कर्मठ कुलपति मा० प्रो० तलत अहमद से गहन वार्ता करके संस्कृत विभाग की स्थापना करायी। आप स्वयं समझाते हैं कि प्रो० तलत अहमद और डॉ० शुक्ल का यह साहसिक और सराहनीय कार्य रहा।

छत्तीसगढ़ राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु डॉ० शुक्ल 2016 से सतत् प्रयासरत हैं।
डॉ० शुक्ल ने सन 1980 में विश्व के युवाओं के दैदीप्यमान व्यक्तित्व, जाज्वल्यमान प्रतिभा और उज्ज्वल भविष्य के लिए ‘पर्याकृत्रि शास्त्र’ (Envicultology) नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया जिसका महत्व गोल्डेन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में सम्मिलित किया गया।

भारतीय पर्यावरण संस्कृति (पर्याकृत्रि शास्त्र) का अध्ययन-अध्यापन डॉ० शुक्ल ने सतत् 251 घण्टे किया जो गोल्डेन बुक ऑफ विश्व रिकार्ड में सम्मिलित किया गया।

इसके साथ ही साथ डॉ० शुक्ल ने सम्पूर्ण प्रदेश के 71 जनपदों में डॉ० शुक्ल ने सभाएं करके 7711 कि०मी० की पर्यावरण संस्कृति उद्बोधन यात्रा 51 दिवसों में पूर्ण की इसे भी गोल्डेन बुक ऑफ विश्व रिकार्ड में सम्मिलित किया गया।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पर्यावरण संस्कृति (पर्याकृत्रि शास्त्र) के महत्व से अत्यधिक प्रभावित होकर महामहिम राज्यपाल श्री विष्णुकान्त शास्त्री जी के आदेश से उत्तर प्रदेश शासन ने एक शासनादेश जारी किया जिससे उत्तर प्रदेश के समस्त विद्यालयों में पर्याकृतशास्त्र के प्रचार-प्रसार को अनिवार्य किया गया।

डॉ० शुक्ल ने पर्यावरण संस्कृति (पर्याकृत्रि शास्त्र) के प्रचार-प्रसार के लिए सबसे पहले जनपद रायबरेली के समस्त शहरी एवं ग्रामीण विद्यालयों में भीषण गर्मी, घनघोर वर्षा और कड़ा ठंड में साइकिल से जा-जाकर बच्चों, शिक्षको और अभिभावकों को प्रेरित किया।
उसके बाद अपनी जन्मभूमि शिवनगर से राजघाट महात्मा गांधी की समाधि, नई दिल्ली तक 14 दिवसीय पर्यावरण संस्कृति उद्बोधन यात्रा डॉ० शुक्ल ने परिपूर्ण की जिसमें कमिश्नर, जिलाधिकारी, उप-जिलाधिकारी, बी०एस०ए० तथा डी०एफ०ओ० आदि अधिकारीगणों में सहभागिता की। गांधी समाधि स्थल, नई दिल्ली में माननीया सुप्रसिद्ध समाजसेविका निर्मला देश पाण्डेय के साथ कल्पवृक्ष का आरोपण किया।

पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी डॉ० शुक्ल के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि- “आप भारत की गरिमा को बढ़ाने में सक्षम होंगे”।

डॉ० शुक्ल के वैदुष्य और कुशल प्रशासन को देखते हुए यू०जी०सी० के सेक्रेटरी ने डायनमिक पर्सनालिटी कहा। छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग, रायपुर के सराहनीय कायों को देखते हुए महामहिम राज्यपाल बलरामजी दास टण्डन और माननीया सुश्री अनुसुइया उइके जी ने डॉ० शुक्ल को अनुशासनप्रिय, ईमानदार, ऊर्जावान मूर्धन्य विद्वान बताया।
छत्तीसगढ़ में डॉ० शुक्ल के उच्च शिक्षा से संबंधित अति उत्कृष्ट कार्यों में 03 गोल्डेन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड द्वारा प्रशंसित किये गये।

डॉ० शुक्ल के वैदुष्य को देखकर ही यू०जी०सी०, नई दिल्ली और नैक, बंगलौर ने देश के 31 विभिन्न विश्वविद्यालयों के उच्च स्तरीय विविध कार्यों में अपने प्रतिनिधि के रूप में कभी चेयरमैन और कभी वरिष्ठ सदस्य बनाया। डॉ० शुक्ल के निर्देशन में 40 शोधार्थियों ने शोधकार्य किया। डॉ० शुक्ल ने 16 पुस्तकों का प्रणयन तथा सम्पादन किया। डॉ० शुक्ल अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सदस्य हैं।
डॉ० शुक्ल की अनुपम राष्ट्रभक्ति के सन्दर्भ में यह कहा जाए कि 72 वर्ष की आयु में जी-20 की सफलता, भारत ‘विश्व गुरू’ बने, प्रधानमन्त्री ‘पृथ्वी रत्न’ के रूप में विख्यात हों के लिए पतित पावनी गंगा जी के तट पर स्थित सिद्ध ज्वालेश्वर शिव मंदिर पर 27 घण्टे का लगातार महामृत्युंजय महामंत्र का जाप 21-22 फरवरी, 2022 को परिपूर्ण करना यह एक साहसिक और प्रशंसनीय कार्य है। इस कार्य को गोल्डेन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड ने अपने रिकार्ड में संदर्भित किया है।
21-22 फरवरी, 2023 को भारत ‘विश्व गुरू’ बने, विकसित भारत अभियान-2047 सफल हो और माननीय मोदी जी सतत् प्रधानमन्त्री बने रहें, के लिए डॉ० शुक्ल ने साढ़े सत्ताइस घण्टे का ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप पतित पावनी गंगा जी के तट पर सिद्ध ज्वालेश्वर शिव मंदिर पर परिपूर्ण किया।
डॉ० शुक्ल की यह अनुपम राष्ट्रभक्ति है कि अपनी जन्मभूमि को विश्व स्तर पर स्थापित किया और देवाधिदेव से भारत राष्ट्र की गरिमा के संवर्धन के लिए अनेक अनुष्ठान संपादित किये।
डॉ० शुक्ल इस समय भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय गुरु घासीदास, बिलासपुर में एडजंक्ट फैकल्टी के रूप में अपने ज्ञान का विस्तार कर रहे हैं।
ध्यातत्व है कि उपर्युक्त सभी कार्यों के सम्पादन में डॉ० शुक्ल ने न सरकारी अनुदान लेते हैं और न दान और न चंदा। देवाधिदेव महादेव की प्रेरणा समझकर वह अपने संसाधनों से ही सभी कार्य निष्पादित करते हैं।

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