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न्यायालय से नहीं मिली राहत और बढ़ गई आफत ! बड़ा सवाल – क्या सिर्फ बेगुनाह शिक्षक होंगे परेशान या लेनदेन का खेल खेलने वाले अधिकारी और दलालों पर भी दर्ज होगा FIR ?

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न्यायालय से नहीं मिली राहत…. उल्टी बढ़ गई आफत ! बड़ा सवाल – क्या सिर्फ बेगुनाह शिक्षक होंगे परेशान या लेनदेन का खेल खेलने वाले अधिकारी और दलालों पर भी दर्ज होगा FIR ?

प्रदेश के हजारों शिक्षकों का सुकून खो चुका है और वह मानसिक प्रताड़ना झेलने को विवश है और यह समस्या दिन-ब-दिन बढ़ते जा रही है लेकिन जिन्होंने यह पूरी स्थिति पैदा की है उन पर विभाग की नजरे इनायत है यही वजह है कि पूरी भ्रष्ट व्यवस्था को जन्म देने वाले अधिकारी और दलाल किस्म के लोगों पर विभाग ने अभी तक FIR तक दर्ज नहीं करवाया है , यह सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि स्वयं स्कूल शिक्षा मंत्री रविंद्र चौबे ने मीडिया के समक्ष कई बार यह बात दोहराया है कि दोषी अधिकारी कर्मचारी और इस पूरे मामले में शामिल लोगों पर एफआईआर दर्ज होगा फिर आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि FIR दर्ज ही नहीं हो रहा है जबकि 2700 से भी अधिक शिक्षकों की पदोन्नति को निरस्त कर दिया गया है और अब वह दर दर की ठोकने खाने को विवश है ।

न्यायालय से नहीं मिली शिक्षकों को राहत… उल्टी बढ़ गई आफत

प्रमोशन निरस्त होने के बाद आनन फानन में शिक्षकों ने न्यायालय की शरण ली और इसके बाद जो फैसला निकाल कर आया और विभाग का जो रुख है उसने शिक्षकों की समस्या को और अधिक बढ़ाकर रख दिया है । विभाग शिक्षकों को उसे जगह पर तो ज्वाइन कराने को तैयार है जहां उनकी पहले पोस्टिंग हुई थी लेकिन कई शिक्षक पदोन्नति के पहले वाले पद पर जाना चाहते हैं उसके लिए कोई विकल्प नहीं है । इधर विभागीय जानकारों की बात माने तो भले विभाग ने यह लिख दिया था कि पदोन्नति निरस्त की जाएगी लेकिन नियमानुसार यह संभव नहीं है शायद यही वजह है कि विभाग ने शिक्षकों को पदोन्नति में मिली मूल जगह पर ज्वाइन करने की तो परमिशन दी है लेकिन यदि कोई शिक्षक पदोन्नति छोड़ना चाहता है और पुराने पद पर अपने मूल शाला में ज्वाइन करना चाहता है तो उसके लिए किसी प्रकार का कोई विकल्प शामिल नहीं किया गया है जबकि विभाग ने खुद कहा था कि 10 दिन के अंदर ज्वाइन न करने पर पदोन्नति निरस्त हो जाएगी तो फिर उस विकल्प को क्यों नहीं दिया जा रहा है क्योंकि यदि संशोधन से पहले वाले जगह पर कार्यभार ग्रहण से कहीं कोई दिक्कत नहीं है तो फिर पदोन्नति छोड़कर पुरानी जगह जाने से क्या दिक्कत है।

अधिकारी कर्मचारी और दलाल शिक्षक नेताओं की वजह से शिक्षक हुए परेशान

वास्तव में इस पूरी समस्या के जनक पदोन्नति में शामिल अधिकारी कर्मचारी और शिक्षकों के बीच में शामिल दलाल शिक्षक नेता है जिन्होंने जमकर दलाली की और अपनी जेब भरने के चक्कर में शिक्षकों को एक ऐसी गहरी खाई में धकेल दिया की उम्मीद की कोई किरण भी नजर नहीं आ रही है । पदोन्नति में जगह छुपाए जाते रहे , एक जिले के शिक्षक को दूसरे जिले में पदोन्नति मिलते रही पर शिक्षक संगठनों ने किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं किया और उसके बाद स्वयं हमदर्द बनकर संशोधन के खेल का हिस्सा बन गए और जमकर कमाई की । जिन शिक्षकों ने मूल पदस्थापना को स्वीकार किया है उनका भी दर्द कम नहीं है केवल पैसा और पहचान न होने की वजह से उन्होंने दूर दराज के स्कूल को अपनाने में ही बेहतरी समझी । अगर सही ढंग से पोस्टिंग हुई होती तो रिक्त जगह भी भर गए होते और शिक्षकों को यदि अपने ब्लॉक में पोस्टिंग नहीं मिलती तो कम से कम अपने जिले में तो पोस्टिंग मिल ही गई होती लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में एक जिले के शिक्षकों को जानबूझकर दूसरे जिले भेजा गया और बाद में उन्ही शिक्षकों को पैसे लेकर संशोधित आदेश थमाया गया यहां तक कि जिन स्कूलों का नाम पहले सूची में शामिल नहीं था वह भी संशोधन के लिए उपलब्ध थे बस कीमत थोड़ी और ज्यादा थी कीमत बढ़ते गई और आईपीएल के तर्ज में जिसने ज्यादा बोली लगाई उसे मनमाफिक जगह उपलब्ध कराते चले गए । अभी भी जो शिक्षक नेता सक्रिय हैं वह शिक्षकों के हम दर्द के रूप में नहीं बल्कि अपने गले को फंदे से बचाने के चक्कर में सक्रिय हैं क्योंकि यदि FIR दर्ज होता है और मामले की पुलिसिया जांच होती है तो उनका फसना तय है क्योंकि आम शिक्षक तो यह बता ही देंगे कि उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई किसके हाथों में सौंपी थी क्योंकि यह बात तो तय है कि बिना पैसे के लेनदेन का संशोधन नहीं हुआ है क्योंकि अधिकारी यदि इतनी ही नरम दिल होते तो काउंसलिंग के समय जगह नहीं छुपाई गई होती और एक जिले के शिक्षक को मान मारकर दूसरी जगह को जाने को मजबूर न किया गया होता ।

शिक्षकों को कैसे मिलेगा वेतन !

हाईकोर्ट का प्रारंभिक निर्णय आने के बाद शिक्षकों की आफत इसलिए बढ़ गई है की यथा स्थिति के चक्कर में वह कहीं के भी नहीं रहे ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि उन्हें वेतन कैसे मिलेगा और लोन के बोझ में डूबे शिक्षक अपना घर कैसे चलाएंगे । कोई भी अधिकारी या वकील यह बताने की स्थिति में नहीं है कि केस कब तक चलेगा और न्यायालय के निर्णय के बाद शिक्षक अब आधार में है क्योंकि पुरानी संस्था से उनकी विदाई हो चुकी है और नई संस्था में उन्हें कार्यभार ग्रहण करने को मिलेगा नहीं ऐसे में उनका वेतन उन्हें मिलना नहीं है । सविलियन होते ही शिक्षकों ने कुछ सुकून की जिंदगी हासिल करने के नाम पर लोन का सहारा लिया हुआ है और अधिकांश शिक्षकों की स्थिति यह है कि उनके कमाई का आधा हिस्सा लोन में चला जाता है बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि यदि शिक्षकों को वेतन नहीं मिलेगा तो वह अपने परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएंगे , शायद इसी स्थिति का लाभ विभाग उठाना चाहता है यही वजह है कि मूल पदोन्नत संस्था में कार्यभार ग्रहण करने की अनुमति दी गई है क्योंकि जैसे ही शिक्षक मूल पदोन्नति संस्था में कार्यभार ग्रहण करेंगे उनकी याचिका निरस्त होने की स्थिति में आ जाएगी और अगली पेशी में सरकार की तरफ से यह जानकारी प्रस्तुत की जाएगी कि इतने सारे शिक्षकों ने मूल पदस्थापना में कार्यभार ग्रहण कर लिया है । सरकार ने 21 दोनों का समय लिया है जवाब प्रस्तुत करने के लिए और जरूरी नहीं कि उसके बाद जवाब प्रस्तुत कर ही दिया जाए सरकारी वकील कुछ और समय भी मांग सकते हैं ऐसे में मामले का अक्टूबर तक जाना तो पहले से तय है और कुछ देरी और हो सकती है , केस में जितनी देरी होगी उसमें न तो विभाग का कुछ जाना है और न वकीलों का जो भी समस्या झेलेंगे वह सिर्फ और सिर्फ शिक्षक झेलेंगे ।

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