संशोधन मामले का असली गुनहगार कौन ? क्या शिक्षक संगठनों की आपसी लड़ाई पड़ गई शिक्षकों को भारी या भ्रष्ट व्यवस्था के हो गए बेकसूर शिक्षक शिकार । आखिर पैसे और जगह दोनो गवाने वाले शिक्षक कैसे है इस मामले में दोषी !
प्रदेश में 2723 शिक्षकों का संशोधन निरस्त हो चुका है और यह आंकड़ा बढ़ने की भी संभावना है । 4 तारीख को आदेश जारी होने के बाद 5 तारीख को शिक्षक दिवस के दिन यह तमाम शिक्षक खून के आंसू रोने को मजबूर है और कई शिक्षक संघ इसे अपने प्रयासों की जीत बता रहे हैं लेकिन क्या यह वास्तव में जीत है । यह तमाम लोग उसे समय कहां थे जब भ्रष्टाचार का नंगा नाच हो रहा था और पैसे की बोली लगकर जगह की बंदरबाट हो रही थी । जब भ्रष्ट जेडी और लोभ में डूबे बाबू रिक्त जगहों की नीलामी कर रहे थे तब यह सारे सिपाहसलार कहां थे । यह सवाल अब सोशल मीडिया में शिक्षक उठा रहे है पर उनके सवालों का जवाब देने वाला वहां कोई नहीं है ।
शिक्षक नेताओं ने की जमकर दलाली… अपने ही शिक्षक साथियों को लूटने से नहीं आए बाज
दरअसल इस पूरी भ्रष्ट व्यवस्था को तैयार करने में यदि किसी का सबसे बड़ा योगदान है तो वह है शिक्षक संघ के वह तमाम नेता जिन्होंने बहती गंगा में हाथ धोया है । राज्य कार्यालय से काउंसलिंग के लिए जो निर्देश जारी हुए थे उसकी सारे आम धज्जियां उड़ाई जा रही थी तब कुछ शिक्षक नेताओं ने जेडी कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारियों से मिलकर ऐसा खेल खेला की शिक्षक संशोधन के लिए पैसे देने को मजबूर हो गए । जब आम शिक्षकों ने यह आवाज उठाना चालू किया की निर्देशों की अवहेलना हो रही है तो इन्हीं कुछ दलाल नेताओं ने अलग-अलग ग्रुप में यह माहौल बनाना शुरू कर दिया कि बहुत मुश्किल से प्रमोशन का द्वार खुला है और यदि विरोध हुआ तो प्रमोशन पर फिर रोक लग जाएगी । न्यायालय से बड़ी मुश्किल से प्रमोशन का रास्ता खुला था और इसी डर को दिखाकर शिक्षक नेताओं ने विरोध करने वाले शिक्षकों को चुप कर दिया और उसके बाद खुद को शिक्षकों का हितैषी दिखाते हुए कब उनका सौदा कर दिया खुद शिक्षकों को पता नही चला ।
शिक्षक नेता ही बन गए थे जेडी के एजेंट
अलग अलग संभागों के कई शिक्षकों से जब हमने फोन पर बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि ” शिक्षक संगठन के नेता ही हमें उस समय यह समझने लगे थे कि दूर दराज जाने पर वहां रहने खाने का खर्च होगा , बाद में ट्रांसफर के लिए भी मोटी रकम देनी होगी सो बेहतर है कि अभी पैसे देकर अच्छी जगह ले लो और हमेशा के लिए इस समस्या से मुक्ति पा जाओ , फिर प्रमोशन कब मिलेगा यह कोई नहीं जानता । उनकी यह बात हमें सही भी लगी और उन्होंने ही जगह दिला देने की बात कही तो हमने उन्हें अपना ही हितैषी मानकर पैसे दिए थे हमें लगा दो-चार लोगों का संशोधन हो रहा है पर बाद में पता चला कि उन्होंने तो इसे धंधा ही बना लिया था। अभी जब फोन किया तो वह न्यायालय जाने की सलाह दे रहे हैं और कह रहे हैं कि हमने तो कम कर दिया था अब इसमें हमारी क्या गलती है । कुल मिलाकर हम दोनो तरफ से ठगे गए सरकार से भी और अपने संगठन से भी ” शिक्षकों से बात करने के बाद यह तो एकदम स्पष्ट हो गया है कि अधिकांश जगहों पर स्वयं शिक्षक नेताओं ने ही दलाल की भूमिका निभाई और शिक्षकों के मन में पहले डर बैठाया फिर अपना उल्लू सीधा किया और जमकर पैसे बनाए ।
आपसी लड़ाई में जमकर हुआ संशोधन का विरोध…..शिक्षक संगठनों ने भी खोली मामले की पोल
शिक्षक संगठनों में आपस में जबरदस्त फुट है और यह बात किसी से छिपी नहीं है , संशोधन मामले में सबसे अधिक सक्रिय एक नेता ने कुछ अन्य पुराने नेताओं के साथ मिलकर अपना मोर्चा तैयार किया और सरकार के विरोध में जुट गए और बाकी पुराने संगठनों को दरकिनार कर दिया । इसी बात को लेकर दरार और बढ़ी और उसके बाद 9 छोटे-छोटे संगठनों ने अपना एक महासंघ खड़ा कर लिया । संशोधन की गंगा में सबसे अधिक डुबकी लगाने वाले इस नेता ने मंत्री जी को संशोधन निरस्त न करने का ज्ञापन क्या सौंपा , इनके विरोध में खड़े दूसरे धड़े को इन्हें हराने का ऐसा मौका मिला कि पूछो मत और देखते ही देखते पांच और नौ लोगो का ऐसा पक्ष और विपक्ष खड़ा हो गया जिसमें संशोधन यथावत रखने और निरस्त रखने को लेकर सीधे तौर पर मान सम्मान की लड़ाई छिड़ गई । जहां संशोधन यथावत रखने की मांग करने वाले संगठनों ने मंत्री रविंद्र चौबे से 2 टूक जवाब पाने के बाद संशोधन कराने वाले शिक्षकों को अलग-अलग विधायकों और मंत्रियों के पास भेजा वही संशोधन निरस्त करने की मांग करने वाले संगठनों के समूह ने बार-बार मंत्री स्कूल शिक्षा मंत्री रविंद्र चौबे से मुलाकात की , इसमें से एक नेता के बड़े भाई कांग्रेस के पुराने सिपहसालार रहे हैं सो उसके चलते उनके भाई और उनके सहयोगियों को मंत्री से मिलने में किसी प्रकार की मसक्कत भी नहीं करनी पड़ रही थी , बताते हैं कि 2012-13 के आसपास इसी नेता की 1 संगठन के बड़े नेता ने अपने साथियों के साथ मारपीट भी करवाई थी एक बदला शायद यह भी बाकी था । समय का चक्र बदला, मौका हाथ लगा और यह नेता अंतिम वक्त तक संशोधन निरस्त करने पर अड़े रहे । वह मंत्री जी को यह भी समझाने में सफल रहे की 75% शिक्षकों ने चुपचाप जहां पदस्थापना मिली वहां कार्यभार ग्रहण कर लिया और यदि संशोधन को निरस्त नहीं किया जाता है तो सीधे तौर पर 75% शिक्षकों के साथ नइंसाफी होगी क्योंकि संशोधन वाली जगह अगर इन्हें दिखाई गई होती तो वह भी उस जगह को हासिल कर लेते । यही नहीं कुछ शिक्षक संगठनों ने तमाम दस्तावेजों के साथ विभाग और मंत्री जी के पास शिकायत की और पूरी पोल खोल कर रख दी की कैसे जेडी कार्यालय से एक दिन में सैकड़ो संशोधन आदेश जारी हुए हैं । खास तौर पर इस मामले में बलौदा बाजार का एक संगठन और कबीरधाम का एक दूसरा संगठन काफी प्रभावी सिद्ध हुआ क्योंकि काफी प्रमाणिक दस्तावेजों और तथ्यों के साथ उन्होंने शिकायत की थी जिसे झूठला पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था ।
सोशल मीडिया में जमकर उगल रहे शिक्षक अपना गुस्सा… आने वाले समय में सामने आ सकता है दलाली करने वालों का नाम
संशोधन आदेश निरस्त हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय गुजर चुका है और जैसे-जैसे समय बढ़ते जा रहा है वैसे-वैसे शिक्षकों के सब्र का बांध टूटते जा रहा है , अपने ही बीच के विभीषण और जयचंदों से परेशान शिक्षकों ने अब इशारों इशारों में ही ग्रुप में लिखना शुरू भी कर दिया है और कई शिक्षकों ने तो यहां तक लिख दिया है कि ऑडियो कॉल रिकॉर्ड से लेकर तमाम सबूत उनके पास जमा है और यदि डूबने की स्थिति आई तो वह इसके जिम्मेदार लोगों को भी नहीं छोड़ेंगे इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में यह लड़ाई और अधिक गंभीर हो सकती है । शिक्षकों की एक शिकायत इस मामले को पुलिसिया कारवाई तक ले जाने में सक्षम है और कुछ नाराज शिक्षक अब सीधे तौर पर लिख रहे हैं कि यदि पैसा वापस नहीं हुआ तो फिर पैसा लेने वाले का नाम भी सार्वजनिक होगा । कुछ लोगों को यह भी कहना है कि जितना एफर्ट सरकार ने प्रमोशन को निरस्त करने में लगाया उतना ही एफर्ट परेशान शिक्षकों को उनका पैसा दिलाने में भी लगा दे तो वह खुशी-खुशी सरकार का फैसला स्वीकार कर लेंगे । एक शिक्षक ने तो यह भी लिखा है कि सरकार जब चिटफंड वालों का पैसा लौटा सकती है तो हमारे साथ तो उससे भी बड़ी धोखाधड़ी हुई है हमारे मामले में सरकार मुंह पर हाथ धरकर क्यों बैठी है , जो दोषी हैं उनसे अब पैसे देने की जिम्मेदारी भी सरकार ले ले या केवल हमें परेशान करने की जिम्मेदारी उनकी है । अगर आप शिक्षकों के मनोभाव को समझेंगे तो बहुत हद तक शिक्षक सही भी है क्योंकि पहले भ्रष्ट व्यवस्था का जाल बुना गया उन्हें फसाया गया उनसे पैसे वसूले गए सारा खेल खेला गया और अंत में उन्हें घुट घुट कर मरने के लिए छोड़ दिया गया।