आपसी कलह,कर्मचारियों की अनदेखी या भ्रष्टाचार कौन है कांग्रेस की हार का असली जिम्मेदार…? देखिए TNA की ख़ास रिपोर्ट
कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचने से भी ज्यादा कठिन है उसमें कायम रहना।
छत्तीसगढ़ में 15 वर्ष के वनवास के बाद आखिरकार कांग्रेस की 2018 में सत्ता में वापसी हुई वापसी भी ऐसे की सारे अनुमान और राजनीतिक पंडितों के दावे धरी की धरी रह गई।
2023 के चुनाव ने भाजपा की ऐसे दमदार वापसी की है कि अब कांग्रेस के पास बैठकर समीक्षा करने के अलावा कुछ नहीं रह गया है समीक्षा इस बात का कि आखिरकार कैसे उसके 9 मंत्री हार गए…? कैसे उसके कद्दावर नेता अपने ही गढ़ों में हार गए…? कैसे सरगुजा से जहां ढाई माह पहले ही वहां के महाराज को डिप्टी सीएम बनाकर कांग्रेस ने बड़ा संकेत देने की कोशिश की थी वहां से सुपड़ा साफ हो गया ….?
2018 में कांग्रेस 68 सीट जीतकर सत्ता में काबिज हुई हालांकि इस तरह की ऐतिहासिक जीत की उम्मीद कांग्रेस को भी नहीं थी इस जीत के पीछे की वजहों को यदि जाने तो यह जीत सामूहिक प्रयास , बेहतरीन घोषणा पत्र, भाजपा के प्रति सत्ता विरोधी लहर आदि रही।
2018 में चुनाव कैंपेनिंग के दौरान कांग्रेस के कई बड़े नेता खुद को मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के रूप में देख रहे थे ऐसे में कांग्रेस को जिताने के लिए उनके प्रयास में तनिक भी कमी नहीं रही।
सत्ता मिलने के पश्चात भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया शुरुआत के कुछ महीने सब ठीक-ठाक ही चल रहा था लेकिन राजनीतिक गलियारों में एक कहावत है “कांग्रेस को यदि कोई हरा सकता है तो वह है खुद कांग्रेस” और छत्तीसगढ़ में भी यही हुआ कांग्रेसी नेता अपने ही नेताओं की टांग खींचने में उन्हें नीचा दिखाने में लग गए। छत्तीसगढ़ गठन के पूर्व से ही छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है और शायद इसीलिए मुख्यमंत्री रहते हुए अर्जुन सिंह ने छत्तीसगढ़ के खरसिया से उपचुनाव लड़ने का निर्णय लिया था, किंतु छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद ऐसा क्या हो गया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वापसी कठिन हो गई है हालांकि आज भी कांग्रेस उतनी बुरी स्थिति में नहीं है जितनी 2018 में भाजपा की हुई थी । 2018 से पहले कांग्रेस की सत्ता से दूरी को लेकर अजीत जोगी पर इल्जाम लगाते रहे अजीत जोगी का कांग्रेस से अलग होने के बाद कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सत्ता में काबिज हुई किंतु इस कामयाबी को कांग्रेस 2023 में रिपीट नहीं कर पाई।
कांग्रेस की हार की प्रमुख वजहें
कांग्रेस की हार की कई वजह हो सकती है और कांग्रेस पार्टी इसका मंथन और चिंतन भी करेगी किंतु जानकार लोगों, राजनीतिक पंडितों और सोशल मीडिया में चल रहे चर्चाओं में जो बातें खुलकर आ रही है उसमें कांग्रेस की हार की यह वजह बताई जा रही है।
छत्तीसगढ़ के बड़े नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी- छत्तीसगढ़ के बड़े नेता आपस में बटे रहे। आपसी गुटबाजी के चलते विकास के जो कार्य होने थे वह काम नहीं हो पाए जिससे जनता की नाराजगी बढ़ी।
योजनाओं को केवल किसान केंद्रित कर देना – भूपेश बघेल ने योजनाओं को केवल किसान केंद्रित किया अधिकांश योजनाएं किसानों के लिए बनाई गई जिससे युवा, बेरोजगार, कर्मचारी, व्यापारी आदि उपेक्षित हुए।
कर्मचारियों की लगातार अनदेखी – सत्ता में आने के बाद भूपेश सरकार ने कर्मचारियों की लगातार अनदेखी की डीए जैसे मूलभूत अधिकारों के लिए भी कर्मचारियों को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा अनियमित कर्मचारियों के आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी दबाव पूर्वक आंदोलन वापस करवाया गया । छत्तीसगढ़ में सहायक शिक्षक एलबी बड़ी संख्या में है इतनी बड़ी संख्या को लगातार गुमराह किया गया मांगे पूरी करने के वादे तो किए गए लेकिन मांग कभी पूरा ही नहीं किया गया। ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर कर्मचारियों से भारी वसूली की गई
किसान केवल किसान नही होता इसके घर में कर्मचारी,युवा,बेरोजगार, महिला और व्यापारी भी हो सकते हैं शायद कांग्रेस यह भूल गई।
पीएससी और व्यापम जैसे संवैधानिक संस्था पर भर्ती घोटाले का आरोप लगना।
पीआर एजेंसियों के छद्म लोकप्रियता के आवरण से भूपेश बघेल कभी बाहर ही नही आ पाए।भेंट मुलाकात के दौरान सीखा पढ़ाकर लाए गए भीड़ और रटी रटाई प्रशंसा को अपनी लोकप्रियता और योजनाओं को जनकल्याणकारी मान लेना भूपेश बघेल की सबसे बड़ी कमी थी।
बड़े अधिकारी वर्ग में भी कुछ खास लोगों को तरजीह देना और मुख्यमंत्री का तेज तर्रार स्वभाव हार का एक कारण हो सकता है।
कारण तो और भी अनेक हो सकते हैं इन कारणों की समीक्षा भी जरूर होगी लेकिन अब इस समीक्षा का कोई औचित्य नहीं रह गया है यदि इससे सबक लेते हैं तो ठीक है नहीं तो चिड़िया खेत चुग गई है