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शिक्षकों की पदोन्नति के सपने पर फिलहाल लगा फुल स्टॉप …बड़ा सवाल – आखिर क्यों और किसके इशारे पर बोला गया झूठ !

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यूं तो शिक्षक अपने बच्चों को पढ़ते समय विशेष तौर पर हिंदी विषय में यह पूछते हैं कि बताओ कि – किसने किससे कहा , लेकिन फिलहाल यह सवाल शिक्षकों के गलियारे में गूंज रहा है कि किसने किसे कहा क्यों कहा और क्या सच में कहा !

प्रदेश के शिक्षक खास तौर पर सहायक शिक्षक और शिक्षक अपने प्रमोशन को लेकर बीते एक माह से कुछ ज्यादा ही एग्रेसिव थे और स्थिति सरकार और कर्मचारियों के बीच आर पार की भी बनने जा रही थी , इसी बीच कुछ शिक्षक नेताओं के जरिए यह बात निकाल कर सामने आई की आचार संहिता में प्रमोशन बाधित नहीं होता हालांकि यह बात हैरान करने वाली थी लेकिन शिक्षक नेताओं का दावा था कि यह जानकारी स्कूल शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा उन्हें दी गई है और उन्होंने आंख मूंदकर इस पर भरोसा भी कर लिया और नीचे भी शिक्षकों को भरोसा दिलाने में जुट गए । यहां तक कि जिन शिक्षकों ने इस बात का विरोध किया उन्हें इस बात का डर दिखाया गया कि यदि आप विरोध करते हैं तो उसे स्थिति में होने वाले प्रमोशन से सभी शिक्षकों को हाथ धोना पड़ेगा ऐसे में विरोध करने वाले शिक्षकों ने भी चुप्पी साध ली और मामला धीरे-धीरे आचार संहिता की तरफ बढ़ते गया । 9 तारीख को आचार संहिता लगने के बाद भी कुछ शिक्षक नेताओं के हवाले से फिर दावा किया गया की प्रमोशन हर हाल में होगा लेकिन अंत में वही हुआ जो आमतौर पर होता है । आचार संहिता जारी होने के बाद अचानक से बैक डेट के आदेश वायरल होने लगे इधर निर्वाचन आयोग को यह बात समझते देर नहीं लगी की विभाग की तरफ से कोई और ही खेल खेला जा रहा है और उन्होंने खास तौर पर स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को संबोधित करते हुए एक पत्र जारी कर दिया जिसमें सीधे तौर पर संदर्भ में 6 तारीख के उस आदेश का भी जिक्र है जो 9 तारीख के बाद वायरल हुआ है । निर्वाचन आयोग द्वारा भेजे गए पत्र में सात तौर पर लिख दिया गया है कि अब किसी भी प्रकार की नियुक्ति / स्थानांतरण प्रतिनियुक्ति/ पदोन्नति/कार्यभार ग्रहण और कार्य मुक्ति नहीं हो सकती और इस पर तुरंत रोक लगाया जाए , इधर निर्वाचन आयोग का कड़े पत्र जारी होते ही स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से भी नीचे जानकारी प्रेषित कर दी गई और अब पूरे मामले पर लग गया है ।

नेताओं की अनभिज्ञता या जानबूझकर बोला गया झूठ !

अब आते हैं उस विषय पर जो सहायक शिक्षकों और शिक्षकों की पदोन्नति से जुड़ा हुआ है । इस मामले में शिक्षक नेताओं के हवाले से यह दावा हुआ की पदोन्नति आचार संहिता में भी हो सकता है अगर यह बात अधिकारियों के जरिए कहीं भी गई है तो हैरानी इस बात की है कि क्या शिक्षक नेताओं को इसकी जानकारी नहीं थी कि ऐसा होना संभव नहीं है । जहां 7 दिन से ऊपर की अवकाश के लिए भी राज्य निर्वाचन कार्यालय को जानकारी देनी होती है जहां तीन दिन की भी छुट्टी सीधे निर्वाचन अधिकारी यानी कलेक्टर से लेनी होती है जिसमें कोई आर्थिक लाभ भी कर्मचारी को नहीं मिलता उस आदर्श आचार संहिता में प्रमोशन कैसे मिलेगा जिसमें सीधे तौर पर आर्थिक और पद लाभ दोनों होता है । कुल मिलाकर यह भी अबूझ पहेली है की किसने किस मूर्ख बनाया है शिक्षक नेता ने अपने शिक्षक साथियों को या फिर अधिकारियों ने शिक्षक नेता को ।

सरकार को नहीं झेलना पड़ा विरोध , बिना टकराहट के सुलझ गया सारा मामला ।

हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे अधिक लाभ में रहा वह सरकार है क्योंकि सहायक शिक्षकों ने बीते 5 साल में कई बार सरकार के लिए विषम परिस्थिति खड़ी की थी और प्रदेश में यदि कोई संगठन अकेले अपने दम पर सरकार को नको तले चने चबाने का दम रखता था तो वह सहायक शिक्षकों का संगठन था और वेतन विसंगति के मुद्दे पर सहायक शिक्षकों का आक्रोश सरकार पहले भी देख चुकी थी । ऐसे में सरकार की रणनीतिकारों को भी कहीं न कहीं इस बात की चिंता सता रही थी कि चुनाव के पहले शिक्षकों के हड़ताल को न झेलना पड़े लेकिन सरकार की रणनीति काम कर गई और बिना किसी हड़ताल के सरकार चुनाव में पहुंच गई है । न किसी प्रकार के दमन का रास्ता अपनाना पड़ा और न किसी प्रकार की धमकी देनी पड़ी , सब कुछ अधिकारियों ने ही चतुराई से सम्हाल लिया । इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की तारीख तो करनी ही पड़ेगी जो उन्होंने सरकार को इतने बड़े धर्म संकट से बचा लिया ।

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