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कैबिनेट बैठक के बाद जमकर फूटा सरकार पर सहायक शिक्षकों का गुस्सा, कैबिनेट बैठक पर लगी थी शाम से सहायक शिक्षकों की नजर और जब आया रिजल्ट तो….

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प्रदेश के सहायक शिक्षक बीते 5 सालों से अपने संघर्ष का लोहा मनवाते आ रहे है । बीते 5 सालों में कई बार ऐसे अवसर आए जब सहायक शिक्षकों को रोकने की तमाम कोशिशो में सरकार फेल हुई लेकिन अंत में जैसा कि होता है सरकार अपने इरादों में सफल हो गई । कल कैबिनेट बैठक पर सहायक शिक्षकों की नजर इसलिए लगी हुई थी कि उन्ही के संगठन के प्रदेश अध्यक्ष और तमाम नेताओं ने एक दिन पहले ही सार्वजनिक रूप से इस बात की घोषणा की थी की सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति को दूर करने के लिए सरकार और उनके बीच फार्मूला तैयार हो चुका है और यह फार्मूला वही चिर परिचित फार्मूला है जिसके तहत पिछले बार पदोन्नति हुई है यानी वन टाइम रिलैक्सेशन के तहत पदोन्नति की सौगात सरकार देने जा रही है दावा यहां तक किया गया की पूरी फाइल तैयार हो गई है और एक-दो दिनों में कैबिनेट की बैठक होगी जिसमें इस पर मुहर लग जाएगी , कल दोपहर को अचानक से यह खबर आई की शाम को कैबिनेट की बैठक होना प्रस्तावित है जिसके बाद से कहीं न कहीं सहायक शिक्षकों को यह लगने लगा था की अप्रत्याशित रूप से हो रही यह बैठक उन्हीं की फाइल को पास करने के लिए हो रही है । यही वजह है की सहायक शिक्षक कैबिनेट बैठक के होने वाले निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और जब परिणाम आया तो एक बार फिर वही ढाक के तीन पात ।

सोशल मीडिया में खुलकर विरोध कर रहे सहायक शिक्षक

संभवत: यह कैबिनेट की अंतिम बैठक थी क्योंकि 10 तारीख के पहले आचार संहिता लगना लगभग तय है ऐसे में जो कुछ भी होना था वह इसी बैठक में होना था सरकार ने महुआ बोर्ड के गठन से लेकर संचालनालय में दो डिप्टी कलेक्टर नियुक्त करने तक के प्रस्ताव को मंजूरी दी पर सहायक शिक्षक की वेतन विसंगति निराकरण के संबंध में एक शब्द तक नहीं कहा और इसके बाद प्रेस नोट आते ही सहायक शिक्षकों का सब्र का बांध टूट गया जिसकी जद में उनके स्वयं के प्रांत अध्यक्ष भी आते रहे । सबसे अधिक गुस्सा सहायक शिक्षक स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला से नजर आ रहे हैं और उनका मानना है कि सरकार की तरफ से आलोक शुक्ला अपनी नीति में सफल रहे और उन्होंने उनके संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मनीष मिश्रा को विश्वास में लेकर सहायक शिक्षकों की तरफ से होने वाले संकल्प सभा को पूरी तरह से रोक दिया दरअसल संगठन की तरफ से यह घोषणा की गई थी कि यदि सहायक शिक्षकों के पक्ष में कोई निर्णय नहीं होता है तो फिर सहायक शिक्षक संकल्प सभा का आयोजन करेंगे और उसमें सरकार के लिए एक बड़ा मैसेज होगा लेकिन लगातार संगठन और स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बैठक होती रही और संगठन के पदाधिकारी के हवाले से यह खबर आती रही की सरकार उनके लिए कुछ बड़ा करने वाली है इसी वजह से 2 अक्टूबर को होने वाले संकल्प सभा को भी टाल दिया गया । बहुत से शिक्षक संकल्प सभा को लेकर प्रयास कर रहे थे उन्हें भी शांत करा दिया गया था सिर्फ यह कहकर कि यदि आप लोग ऐसा कुछ प्रयास करते हैं तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है लेकिन कल जब कोई निर्णय नहीं आया तो इन्हीं शिक्षकों का गुस्सा सबसे अधिक था ।

अधिकारियों ने नही कहा एक शब्द भी , संगठन के नेताओं ने ही रखी पूरी बात

आक्रोश की जद में शिक्षक नेता मनीष मिश्रा भी आ गए है इसकी प्रमुख वजह यह है शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इन सारे फॉर्मूलों के विषय में मीडिया के समक्ष एक शब्द भी नहीं कहा । जब उनसे पूछा गया तो या तो उन्होंने फोन नहीं उठाया या फिर व्यस्तता की बात कह कर फोन काट दी इसे ही यह लग रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है । ऐसे में जितनी भी बातें बाहर निकाल कर आई वह सब शिक्षक संगठन के नेताओं के माध्यम से ही बाहर आई वह लगातार दावा करते रहे की बड़ी सौगात मिलने वाली है और कल उन्हें भी कैबिनेट बैठक से बड़ी उम्मीदे रही होगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो यह माना जा सकता है कि कहीं न कहीं शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने इरादों में सफल रहे । ऐसे भी आचार संहिता लगने के बाद पदोन्नति की प्रक्रिया नहीं होनी थी क्योंकि भारत निर्वाचन आयोग किसी भी कीमत पर इसकी अनुमति नहीं देता क्योंकि केंद्र में भाजपा की और राज्य में कांग्रेस की सरकार है अलग-अलग सरकार होने से ऐसे निर्णय की जमकर खिलाफत होती है जहां हजारों हजारों कर्मचारियों को लाभ होना है तो यह पहले से भी तय था की आचार संहिता में पदोन्नति नहीं हो सकती थी और यह बात हमने पहले भी खबर में भी प्रकाशित की थी लेकिन संगठन के नेताओं के हवाले से बार-बार यह खबरें आती रही की प्रमुख सचिव दावा कर रहे हैं की पदोन्नति पर आचार संहिता का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वह हर हाल में पदोन्नति करा देंगे । अब सोशल मीडिया में मायूसी और आक्रोश का मिला जुला दौर शुरू हो चुका है क्योंकि 5 सालों के बाद भी अपने हजारों रुपए खर्च कर संघर्ष करने वाले शिक्षकों के हिस्से में सिवाय संघर्ष की यादों के कुछ भी नहीं आया है ।

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