क्या किसानों के बदौलत हो जाएगी कांग्रेस की चुनावी नैय्या पार या कर्मचारियों की अनदेखी से बीच मझधार में फंस जाएगी सरकार ??
विधानसभा चुनाव के लिए दो माह से भी कम का समय बचा है और इस बात की उम्मीद बहुत कम ही बची है कि सरकार कोई नया और बड़ा निर्णय लेगी हालांकि कुछ कर्मचारी संगठनों के नेताओं के तरफ से ऐसा दावा अवश्य किया जा रहा है उनकी मांग आचार संहिता के बाद भी पूरी हो जाएगी लेकिन चुनावी आचार संहिता को जानने वाले यह बात भली-भांति जानते हैं की चुनावी आचार संहिता में ऐसा कुछ भी होना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और यह केवल गेंद भारत निर्वाचन आयोग के पाले में डालकर खुद को बचाने की मुहिम मात्र है । स्वाभाविक बात है कि जो काम पांच सालों में नहीं हुआ यदि उसे आचार संहिता में करने की दलील दी जा रही है तो इसका साफ मतलब है कि अधिकारियों ने भी कही न कही नेतृत्वकर्ताओं की नब्ज पर उंगली दबा दी है । बहरहाल संगठन के नेताओं के अधिकारियों की स्तुतिगान और पोस्टर छपास की मुहिम को छोड़ दें तो आम कर्मचारियों का गुस्सा सोशल मीडिया में सरकार और उनके अधिकारियों पर जमकर फूट रहा है और अब यह साफ नजर आने लगा है की कर्मचारी सरकार से बुरी तरह नाराज है इसके पीछे की प्रमुख वजह वादाखिलाफी है ।
कर्मचारी फेडरेशन के अभूतपूर्व आंदोलन से भी नही मिली सफलता !
छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष कमल वर्मा ने जिस प्रकार अलग-अलग संगठनों को जोड़ा और आंदोलन खड़ा किया वह छत्तीसगढ़ के इतिहास में ‘न भूतों न भविष्यति’ को चरितार्थ करने वाला आंदोलन था , बावजूद उसके कर्मचारियों की कोई बड़ी मांग पूरी नहीं हुई । कर्मचारियों को सरकार ने उनका ही हक कुछ इस अंदाज में दिया की मजबूरन तारीफ भी करना पड़ा और दिल से वह यह जानते भी हैं कि किसी प्रकार की कोई सौगात नहीं मिली है क्योंकि जो DA और HRA मिला है उस पर कुंडली मारकर भी तो सरकार ही बैठी थी । हड़ताल के बाद उसी को टुकड़ों टुकड़ों में दिया गया जो पहले मिल जाना था । चार स्तरीय वेतनमान , कर्मचारियों की वेतन विसंगति जैसे प्रमुख मुद्दों को तो सरकार ने छुआ ही नहीं और जिस पेंशन की सौगात के नाम पर कर्मचारी संघों द्वारा स्वागत सत्कार किया गया वह दरअसल अभी तक धरातल में उतरा ही नहीं है । जिन कर्मचारियों की मृत्यु हो चुकी है उनके परिजन अपना आवेदन जमा कर चुके हैं पर किसी को भी इसका लाभ मिलना शुरू नहीं हुआ है ।
सहायक शिक्षकों और लिपिकों की वेतन विसंगति चढ़ गई कमेटी के भेंट !
प्रदेश में 5 सालों तक यदि सबसे ज्यादा कोई मांग चर्चा में रही है तो वह वेतन विसंगति है जिसमें लिपिकों की वेतन विसंगति के विषय में तो स्वयं बिलासपुर जिले में मुख्यमंत्री ने सरकार बनने के बाद लिपिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष से सार्वजनिक रूप से कहा था कि आपकी मांग पूरी होगी वही सहायक शिक्षकों के लिए तो आज भी वह अखबार की कतरन बहुमूल्य है जिसमें बतौर प्रदेश अध्यक्ष वर्तमान मुख्यमंत्री ने स्वयं कहा था की सहायक शिक्षकों की वेतन में विसंगति है और सरकार आने पर उसे दूर किया जाएगा । दोनों ही कर्मचारी संवर्गों ने आंदोलन किया और खास तौर पर सहायक शिक्षकों ने तो जबरदस्त आंदोलन किया लेकिन दोनों के हिस्से में सिर्फ कमेटी आई जिसका रिपोर्ट भी आज तक सार्वजनिक नहीं हो सका है । पूरे 5 साल अधिकारी सहायक शिक्षकों को घूमाते रहे और उनके नेता अपने सहायक शिक्षकों को बारंबार मैदान पर बुलाते रहे लेकिन सही मायने में कहा जाए तो वेतन विसंगति तो दूर नहीं हुई उल्टा उनके ही जेबों से उनके परिवार के हिस्से का हजारों रुपए आंदोलन में खर्च हो गए और अब फिर एक बार उन्हीं के प्रदेश अध्यक्ष के मुंह जबानी यह बात निकाल कर सामने आ रही है कि आचार संहिता में प्रमोशन होगा ऐसा उन्हें स्कूल शिक्षा विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने कहा है । दरअसल शिक्षक संघ के नेता को एक बार पलट कर यह भी पूछ लेना था कि 3 महीने में आने वाली वेतन विसंगति की रिपोर्ट का क्या हुआ ??
कर्मचारियों के हिस्से में आखिर आया तो आया क्या
प्रदेश में कर्मचारी का सबसे बड़ा धड़ा शिक्षक है और इस बड़े धड़े को थोड़ा बहुत यदि कुछ मिला है तो वो है 2 साल में सविलियन, जो की घोषणा पत्र में शामिल था लेकिन इसमें केवल 16278 लोगों को ही लाभ हुआ यही नहीं अभी भी 246 लोग संविलियन से वंचित है और अपनी राह देख रहे हैं । इसके अतिरिक्त पदोन्नति भी हुई है लेकिन जितने विवादों में पदोन्नति हुई उसने सहायक शिक्षकों को सुकून कम और घाव ज्यादा दे दिया । खुलेआम पदों को छुपाया गया , एक ब्लॉक के शिक्षकों को दूसरे ब्लॉक जिले भेजा गया और फिर संशोधन के नाम पर जमकर वसूली की गई जिला स्तरीय संशोधन में तो फिर भी हल्ला नहीं मचा लेकिन संभाग स्तरीय प्रमोशन में जितनी गंदगी मची उतना स्कूल शिक्षा विभाग में कभी नहीं हुआ था ट्रांसफर से अधिक पैसे संशोधन के लिए खर्च करने पड़े और उसके बाद आज वह तमाम शिक्षक सिर पकड़कर रोने को मजबूर है क्योंकि वह अब न घर के हैं न घाट के । इसके अतिरिक्त ट्रांसफर के समय जिन्होंने चढ़ावा चढ़ाया उन्हें दूसरों को हटाकर नियुक्ति दे दी गई जबकि अभी तक शिक्षा विभाग में ऐसा नहीं होता था , यही नहीं एक नया राजपत्र लाकर बस्तर और सरगुजा संभाग से वर्ग 3 और 4 के कर्मचारी का स्थानांतरण अन्य जिला और संभाग में करने पर भी रोक लगा दी गई जिसे लेकर भी कर्मचारियों में गहरी नाराजगी है । हां, अभी तक लगभग 14000 शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है यह नए कर्मचारियों के लिए एक बेहतर निर्णय है ।
शिक्षकों की बात यदि छोड़ दें तो संविदा और अनियमित कर्मचारियों से नियमितीकरण का वादा किया गया था लेकिन संविदा कर्मचारियों को 27 प्रतिशत वेतन वृद्धि और 18 की जगह 30 CL की सौगात मिली है वही अनियमित कर्मचारियों के वेतन में 4000 की बढ़ोतरी हुई है लेकिन नियमितीकरण किसी का नहीं हुआ ऐसा ही छुटपुट निर्णय आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं , स्कूल सफाई कर्मचारीयों और स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मचारियों के लिए हुआ है और अब इन्हीं कर्मचारियों का गुस्सा बाहर निकल रहा है । अनुकंपा की राह देख रहे शिक्षाकर्मियों के परिजनों ने तो महीनो तक हड़ताल किया लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला और अब वह फिर हड़ताल पर बैठ चुके है ।
पिछली बार एक शिक्षक ने खून के घूंट पीते हुए सार्वजनिक रूप से कहा था कि भाजपा की सरकार को 15 सीटों पर ला देंगे और ऐसा हुआ भी था अब एक बार फिर कर्मचारियों का आक्रोश चरम पर है तो यह देखना काफी रोचक रहेगा की किसान और कर्मचारियों में से कौन ज्यादा शक्तिशाली साबित होता है क्योंकि बोनस और समर्थन मूल्य के चलते किसान तो सरकार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं और कर्मचारियों की नाराजगी अब धीरे-धीरे सामने आ रही है तो देखना होगा कि पलड़ा किसका भारी रहता है ।