सहायक शिक्षकों का आंदोलन कल पहुंचेगा राजधानी… अनिश्चितकालीन आंदोलन को लेकर सहायक शिक्षक एकजुट लेकिन बड़ा सवाल क्या इस आंदोलन से पड़ेगा सरकार पर कोई असर !
प्रदेश के सहायक शिक्षक एक बार फिर अपनी वेतन विसंगति की मुख्य मांग को लेकर सड़क पर आ चुके हैं हालांकि इस बार वेतन विसंगति के साथ क्रमोन्नति और पूर्व सेवा गणना की मांग भी जुड़ चुकी है लेकिन सड़क पर शिक्षक थोड़े कम ही नजर आ रहे हैं हालांकि प्रदेश अध्यक्ष मनीष मिश्रा ने अपनी रणनीति में फेरबदल करते हुए दूसरे दिन ही आंदोलन को रायपुर कूच करने के लिए निर्देश जारी कर दिया है और कल से नवा रायपुर के तूता में सहायक शिक्षकों का डेरा होगा पर बड़ा सवाल यह है कि इस बार का आंदोलन क्या आर पार का होगा क्योंकि यह सहायक शिक्षकों के लिए अंतिम मौका होगा जब वह कुछ हासिल कर सकते हैं क्योंकि इसके बाद आचार संहिता लगने वाली है और वर्तमान सरकार का कार्यकाल खत्म हो जाएगा ऐसे में सहायक शिक्षकों के नाम पर बने हुए संगठन सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के पास इस बार चुकने पर उपलब्धि के नाम पर कुछ खास नहीं रहेगा यही वजह है कि धरना स्थल से सरकार को मांग पूरी न होने पर हटाने तक के नारे गूंज रहे हैं जिसका साफ मतलब है कि सहायक शिक्षक आर या पार के मूड में है । बीते साढ़े 4 सालों में सहायक शिक्षकों ने जो अभूतपूर्व हड़ताल किया है वह यह बताने के लिए पर्याप्त है की अभी तक शिक्षाकर्मियों के जो भी हड़ताल हुए थे उसकी रीढ़ की हड्डी सहायक शिक्षक ही रहे हैं और असली संख्या बल उन्हीं के पास है लेकिन बार-बार बदलती रणनीति और सरकार की हठधर्मिता ने फिलहाल सहायक शिक्षकों को सफलता का स्वाद चखने नहीं दिया है । इस बार भी जिस उद्देश्य के साथ मोर्चे का गठन किया गया वह एकदिवसीय हड़ताल के बाद खंडित होकर रह गया और फेडरेशन एक बार फिर से अपने बलबूते पर मैदान में है। हालांकि हड़ताल के लिए संख्याबल से भी अधिक बड़ी परेशानी जो है वह तूता का वह मैदान है जहां से सरकार के कानों तक आंदोलनकारियों की आवाज पहुंचती ही नहीं है और जहां जाकर आंदोलनकारी दोबारा न आने की कसम खा लेते हैं क्योंकि तूता धरना स्थल अब ऐसे धरना स्थल के तौर पर जाना जाने लगा है जहां न मीडियाकर्मियों की आमद होती है , न बेसिक व्यवस्था और न ही कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट… जब इन तीनों चीजों की व्यवस्था ही न हो तो आवाज सरकार तक पहुंचे तो पहुंचे कैसे ?? और शायद इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने तूता का धरना स्थल के रूप में चुनाव किया है ताकि पब्लिक के बीच सरकार के अलावा और किसी की तूती न बोले । कई संगठन तो अब इसी के चलते राजधानी रायपुर के बजाय आसपास के जिलों में वृहद आंदोलन की सोच लेकर आगे बढ़ रहे हैं ताकि कम से कम अलग-अलग प्रचार माध्यमों से आवाज सरकार तक तो पहुंचे और जनता को यह तो पता चले कि कर्मचारी उद्वेलित हैं तूता में तो कर्मचारी खुद ही आंदोलन करते हैं और खुद ही देखते और सुनते हैं । अब कल से फिर सहायक शिक्षकों की दमदार आवाज नवा रायपुर के तूता में गूंजेगी हालांकि सरकार इससे झुकती है या नहीं यह वक्त ही बताएगा लेकिन बीते 4.5 सालों का रिकॉर्ड देखें तो सरकार किसी भी हड़ताल के सामने झुकने के बजाय हठधर्मिता से खड़े रहने में विश्वास दिखाइ है ऐसे में इस बार क्या होता है यह आने वाला वक्त ही बताएगा ।