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फर्जी जाति, दिव्यांगता नियुक्ति मामले में आखिर क्यों नहीं हो रही दोषियों पर कार्रवाई… न्यायालय और विभाग के स्पष्ट आदेश के बाद भी क्यों बचा रहे निचले कार्यालय दोषियों को ??

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कहा जाता है कि सरकारी नौकरी मिलना जितना मुश्किल है उससे कई गुना ज्यादा मुश्किल सरकारी नौकरी से बाहर निकाला जाना है और अब यह नजर भी आ रहा है क्योंकि जिस प्रकार हाईकोर्ट के निर्देश पर शासन की तरफ से आदेश जारी हुआ था उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो फर्जी जाति और दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों पर गाज गिरना तय है लेकिन धीरे-धीरे मामला ऐसे दबा कि अब इसे लेकर फिर कोई शोरगुल नहीं है यहां तक की फर्जी जाति मामले में तो जांच तक पूरी हो चुकी है और केवल कार्रवाई होना बाकी है वहीं फर्जी दिव्यंगता मामले में राज्य कार्यालय ने जो नीचे आदेश भेजा है उसका परिपालन ही नहीं हो रहा है और मामला दब सा गया है । सबसे अधिक कर्मचारी वाला विभाग स्कूल शिक्षा विभाग है अत: सबसे अधिक मामले निकालने की भी गुंजाइश यहीं से है लेकिन जिस प्रकार विभाग की ओर से खानापूर्ति की जा रही है लगता नहीं की कुछ होगा । बिलासपुर की ही बात ले तो जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा 16 जून को राज्य कार्यालय के पत्र को पृष्ठाकिंत करके निकले कार्यालय को भेजा गया है लेकिन न तो निचले कार्यालय के द्वारा इसका पालन किया गया और न ही ऊपर कोई जानकारी भेजी गई और न ही जिला कार्यालय द्वारा रिमाइंडर पत्र जारी करके इसकी जानकारी ली गई है हालत यह है कि जिन की भर्ती दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर हुई है उन्हें जिला मेडिकल बोर्ड या राज्य मेडिकल बोर्ड से अपना परीक्षण करने के लिए निर्देशित ही नहीं किया गया है और आज इस बात को लगभग दो माह होने जा रहा है ।

जबकि माना जा रहा है कि इस मामले में यदि जांच सही तरीके से हुई तो कई दोषी कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा और यह तो मामला केवल 2019 के बाद का है यदि शासन ने पुराने मामलों को निकाल दिया तब तो हाहाकार मचना तय है लेकिन जैसा कि हमेशा से कहा जाता है जो एक बार सरकारी नौकरी में घुस जाता है वह सदा के लिए वही का होकर रह जाता है इसी परिपाटी को चलाते हुए शायद विभाग भी अपने कर्मचारियों पर कार्यवाही नहीं करना चाहता भले ही उन्होंने दूसरे का हक क्यों न छीना हो।

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